dile nadan tujhe huva kya hai
ye na thee hamaaree qismat ke wisaal-e-yaar hota
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं